राजस्थान के अभ्यारण्य

राष्ट्रीय मरू उद्यान

जैसलमेर व बाड़मेर में स्थित हैं तथा सर्वांधिक जैसलमेर में फैला हुआ हैं। इस अभ्यारण्य से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 15 गुजरता हैं। इसकी स्थापना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत सन् 1980 में की गई। इस अभयारण्य में करोड़ों वर्ष पुराने काष्ठ अवशेष, डायनोसोर के अण्डे के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए अभयारण्य के भीतर अकाल गांव में‘फॉसिल्स पार्क’ (अकाल काष्ठ उद्यान) स्थापित किया गया हैं  ।
            गोड़ावन पक्षी इस उद्यान में (मरू उद्यान) में सर्वांधिक पाया जाता हैं। इस पक्षी का नाम:- ग्रेट इंडियन बर्ड, माल मोरड़ी हैं। जोधपुर में इस पक्षी का प्रजनन केंद्र हैं। सेवण घास इस अभयारण्य में सर्वांधिक पायी जाती हैं। इसमें सर्वांधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र स्थित हैं।  आखेट निषिद्ध क्षेत्र 33 हैं (ओरण) सबसे बड़ा 3200 वर्ग किलोमीटर



रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान

यह सवांईमाधोपुर में हैं। इसका पुराना नाम रण स्तम्भपुर हैं। ये सवांईमाधोपुर के शासकों का आखेट क्षेत्र था। जिसे सन् 1955 में अभयारण्य घोषित कर दिया गया। वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत सन् 1973 में इसे टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया हैं।  राजस्थान का पहला टाईगर प्रोजेक्ट था। टाईगर प्रोजेक्ट, 1972 के अधिनियम में शुरू किया गया था। जिसमें विभिन्न जीवों को संरक्षण दिया गया।  सन् 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इस अभ्यारण्य की देख-रेख विश्व वन्य जीव कोष (World Wild Life Fund, WWF) द्वारा की जाती हैं। WWF का प्रतीक सफेद पांडा हैं।




 सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य

 यह अलवर में स्थित हैं। इस सन् 1955 में उद्यान घोषित किया गया।  सन् 1973 में टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया।  इस अभयारण्य में भर्तृहरि की समाधि स्थित हैं। जहां पर साल भर घी का दीपक जलता हैं।  सरिस्का क्षेत्र  में ही  विश्व प्रशिद्ध पाण्डुपोल (लेटे हुए हनुमानजी)   का मंदिर स्थित हैं। यही राजसमन्द झील अभयारण्य स्थित हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 8 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं।




  केवलादेवी अभयारण्य

 यह भरतपुर में स्थित पक्षी अभयारण्य हैं।  इसे सन् 1956 में अभयारण्य घोषित किया गया था।  सन् 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।  सन् 1985 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया। यह अभयारण्य पक्षियों की संरक्षण स्थली व स्वर्ग के रूप में जाना जाता हैं। N.H. 11 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं। इस अभयारण्य में पाए जाने वाले पक्षी है :- साइबेरिया सारस (नवम्बर में आते हैं), अंध बगुला, पनडुब्बी, कठफोवड़ा, कबुतर, गीज, मेलाड़ आदि।





राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य

  चम्बल नदी में चित्तौड़गढ़, कोटा, सवांईमाधोपुर, करौली, धौलपुर में स्थित भारत का एकमात्र घड़ियाल अभ्यारण्य है।  इसकी स्थापना सन् 1976 में की गई थी।  भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य, जवाहर सागर अभयारण्य चम्बल अभयारण्य के भाग हैं।  ये सभी घड़ियाल अभयारण्य है।  चम्बल नदी में डाल्फिन मछली भी पाई जाती हैं। जिसे ‘गांगेय सूस’ कहते हें।
 घड़ियाल प्रजनन केन्द्र:-
1. मुरैना में (मध्यप्रदेश) 2. नाहरगढ़ (जयपुर)
  नोट : -  यह अभयारण्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की संयुक्त परियोजना हैं।




दर्रा राष्ट्रीय उद्यान

फिलहाल इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा नहीं मिला है।  यह कोटा में चम्बल नदी के आसपास स्थित हैं। इसका नया नाम ‘मुकन्दरा हिल्स नेशनल पार्क’ हैं। इसका कुछ विस्तार झालावाड़ में भी हैं। इसकी स्थापना का उद्देष्य रणथम्बौर तथा चम्बल अभयारण्य के पशु-पक्षियों के लिए क्षेत्र विस्तार करना हैं।


खण्डार गलियारा

यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं जो रणथम्भौर व चम्बल, दर्रा अभयारण्य को जोड़ेगा।



  सीतामाता अभयारण्य

 इसका अधिकांश भाग चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। इस अभयारण्य में उड़न गिलहरी पाई जाती हैं। एशिया का दूसरा स्थान जहां यह गिलहरी पाई जाती हैं।



 तालछापर अभयारण्य

यह चुरू में स्थित हैं।  यह काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध हैं। कभी यहां पर कबूतर पाये जाते थें।



माऊण्ट आबू अभयारण्य

 इस अभयारण्य में जंगली मुर्गा तथा एक विशेष प्रकार का पौधा ‘डीरकिलपटेरा आबू एनसिस’ पाया जाता हैं। माऊण्ट आबू अभयारण्य की मान्यता समाप्त होने के कगार पर हैं।



 गजनेर अभयारण्य

इसमें रेत का तीतर, जिसे बटबड़ भी कहते हैं, पाया जाता हैं।



 कुंभलगढ़ अभयारण्य

यह अभयारण्य राजसमन्द में स्थित हैं। यह जंगली भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध हैं।



 सज्जनगढ़ अभयारण्य

 यह उदयपुर में स्थित हैं। यह राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य हैं।  इसे मृगन के रूप में स्थापित किया गया था। सज्जन सिंह उदयपुर के महाराणा थे जिनके प्रयासों से सज्जन कीर्ति सुधारक नामक अखबार चलाया गया।




 फलवारी की लाल अभयारण्य

यह उदयपुर में स्थित हैं।




 रावली-टाड़गढ़ अभयारण्य

 यह अजमेर,पाली व राजसमन्द में फैला हुआ हैं। यहां एक किला भी हैं, जिसे टाड़गढ़ का किला कहते हैं, जो अजमेर में हैं। इस किले का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था। यहां स्वंतत्रता आंदोलन के समय राजनैतिक कैदियों को कैद रखा जाता था।  विजयसिंह पथिक उर्फ भूपसिंह को इसमें कैद रखा गया था।




 वन-विहार अभयारण्य

 यह धौलपुर में स्थित हैं।



 कनक सागर अभयारण्य

 यह बूंदी में स्थित हैं। इसे दुगारी अभयारण्य भी कहते हैं।




 बस्सी अभयारण्य

यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।  चित्तौड़गढ़ की बस्सी काष्ठ कला (कावड़, गणगौर, कठपुतली) के लिए प्रसिद्ध हैं।
 जयपुर की बस्सी डेयरी उद्योग के लिए भी जाना जाता है। 



नाहरगढ़ अभयारण्य

 यह जयपुर में स्थित हैं।  यह एक जैविक उद्यान हैं, जहां घड़ियाल प्रजनन केन्द्र भी है। इसमे चिंकारे (हिरना की एक प्रजाति) भी विचरण करते है।




शेरगढ़ अभयारण्य

 यह बांरा में स्थित हैं। यहां पर सर्प उद्यान भी हैं।



 बंद बारेठा अभयारण्य

 यह भरतपुर में स्थित हैं।  यह केवलादेव अभयारण्य का हिस्सा हैं।  इसमें बया पक्षी सर्वांधिक पाया जाता हैं।




 भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य

 यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। यह चम्बल और बामनी नदी कें चारें ओर फैला हुआ हैं। बमनी नदी चम्बल में बांए से मिलती हैं।



जमावारामगढ़ अभयारण्य

 यह जयुपर में 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मे विस्त्रत  हैं।



 कैलादेवी अभयारण्य:-

 यह करौल में स्थित हैं।  यहां देववन (ओरण) भी हैं।



 जयसमंद अभयारण्य:-

यह उदयपुर से लगभग 53 km की दूरी पर पाली एवं राजसमन्द के बीच स्थित हैं तथा जयसमंद झील के निकट अरावली की घाटी मे 51 km क्षेत्र मे विस्तृत है। इसमे चीतल, काला भालू, सांबर, तेंदुआ, जंगली सूअर आदि वन्यजीव रहते है।  


 मचिया सफारी पार्क

 यह जोधपुर में स्थित, काले हिरणों के लिए सुरक्षित अभयारण्य हैं।



अमृतादेवी कृष्ण मृग पार्क

यह जोधपुर मे खेजड़ली गांव के आस-पास स्थित हैं। यह जोधपुर जिले के खेजडली मे लुप्त हो रहे हिरण प्रजाति के 500 काले हिरणो के संरक्षण के लिए यह मृगवन लाघभाग 50 हेक्टयर क्षेत्र मे विकसित किया गया है ।  इस पार्क का नामकरण आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व वृक्षो को बचाने के लिए अपने प्राण देने वाली अमर शहीद अमृता देवी के नाम पर किया गया है। भाद्रपद शुक्ल पक्षी की नवमी को खेजड़ली गांव में मेला भरता हैं।



रामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (विषधारी)

 यह बूंदी में स्थित हैं। यह बूंदी के शासकों का आखेट क्षेत्र था। यहा लगभग 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मे स्थित है। इसमे साधारण वन्यजीवों के अतिरिक्त कुछ बाघ भी उपस्थित है ।  



 रणथम्भौर में भ्रमण करने वाले व्यक्ति:- बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स, मनमोहनसिंह, प्रकाश सिंह बादल, इंदिरा गांधी।




राजस्थान के मृगवन:-

सज्जनगढ़ मृगवन:- उदयपुर में
माचिया सफारी:- जोधपुर में, कायलाना झील के आसपास स्थित है। कायलाना झील से जोधपुर को पीने का पानी मिलता हैं।
> चित्तौड़गढ़ मृगवन:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास स्थित हैं।
अमृतादेवी मृगवन:- जोधपुर के खेजड़ली गांव में स्थित हैं।
अशोक विहार मृगवन:- यह जयपुर में स्थित हैं।
संजय उद्यान:- जयपुर के शाहपुरा क्षेत्र में स्थित हैं।
पुष्कर मृगवन:- अजमेंर में स्थित हैं।




 आखेट निषिद्ध क्षेत्र

सोरसन:- यह बांरा में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
सोंखलिया/सोंकलिया:- यह अजमेर में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
उजला:- यह जैसलमेर में स्थित हैं, काले हिरणों का संरक्षण स्थल है।
बरड़ोद और जोड़िया:- यह अलवर में स्थित हैं।
फिटकासनी:- यह जोधपुर में स्थित हैं।
साथिन:- यह जोधपुर में स्थित है।
मैनाल:- यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
जवांई बांध:- यह पाली में स्थित हैं।
धौरीमना:- यह बाड़मेंर में स्थित हैं।
> केवलाजी:- यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं।
सर्वांधिक आखेट क्षेत्र (क्षेत्रफल):- जोधपुर में




 वन्य जीवों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्दू:-

> सन् 1972 में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अधिनियम बनाया गया, जिसकें अन्तर्गत राजस्थान में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र घोषित किए गए।
> सन् 2004 में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए नेचर गाई पॉलिसी बनाई गई, जिसे 2006 में जारी किया गया था।
> राजस्थान में पहला वन्यजीव संरक्षण अधिनिमय, 1950 बनाया गया।
> वर्तमान में 1972 का अधिनियम लागू हैं।
> 1972 का अधिनियम राजस्थान में सन् 1973 में लागू हुआ।
> उत्तर भारत का पहला सर्प उद्यान कोटा में स्थापित हैं।
> डॉक्टर सलीम अली पक्षी विशेषज्ञ हैं।
> स्लीम अली इन्टरप्रिटेशन सेंटर केवलादेव अभयारण्य में स्थापित हैं।
> राजस्थान में लुप्त होने वाले जीवों में पहला स्थान गोड़ावन का, डॉल्फिन मछली का, बाघों का हैं।
> सर्वांधिक लुप्त होने वाली जीवों का उल्लेख रेड डाटा बुक में, संभावना वाले येलो बुल में में उल्लेखित किये जाते हैं।
> कैलाश सांखला टाईगर मैन ऑफ इण्डिया जोधुपर के थे।
> पुस्तक:- रिर्टन ऑफ द टाईगर, टाईगर
> बाघ परियोजना कैलाष सांखला ने बनाई थी।
> वन्य जीव सीमार्ती सूची 42 के अंतर्गत आते हैं।
> सन् 1976 के संशोधन के द्वारा इसे सीमावर्ती सूची में डाला गया हैं।
> राजस्थान में जोधपुर पहली रियासत थी जिसने वन्य जीवों को बचाने के लिए कानून बनाया।
> पहला टाईगर सफारी पार्क रणथम्भौर अभयारण्य में स्थापित किया गया था।
> वन्य जीवों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा स्थान हैं।
> सर्वांधिक वन्यजीव असम में हैं।
> बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर में गोड़ावन पक्षी सर्वांधिक पाये जातें हैं। सबसे अधिक जैसलमेर में पाये जाते हैं।
> सर्वांधिक कृष्ण मृग डोलीधोवा (जोधपुर व बाड़मेर) में पाये जाते हैं।

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